उम्मीद

 हे कृष्ण अब तुम्हारा विरह मुझे पीड़ा नहीं देता रातों को नहीं जगाता प्रेम में कमी नहीं फिर भी आँसुओं की लड़ी नहीं शिकायतों से अब मैं भरी नहीं मैं जान गयी हूँ पीड़ा की वजहें खुद को प्रेम को और तुम्हें पहले मन की अभिलाषाएँ थी मोहवश अपेक्षाएँ थी एक सहज इंसानी जिजिविशाएँ थी

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