एक प्रार्थना
मेरे शब्दों की कीमत नहीं
खामोशी को मैंने अपना लिया है
ढूँढ़ा तुझे दर-बदर
मंदिर, मस्जिद से लेकर
शहर के हर चौराहों पर
तुम दिखे कहीं भी नहीं
पलकें मूँद ली हैं तब से
बाहर ढूँढ़ना मैंने बंद कर दिया है
भजन, कीर्तन, हारमोनियम, ढोल
माथे चन्दन का घोल
दुआ, इबादत, मंत्रों के बोल
हर राह से गुजरी
तुम तक आने के लिए
जब मयस्सर नहीं हुआ एहसास
राहें तय करना मैंने बंद कर दिया है
शायद अब मैं पागल दिखती हूँ
खामोशी में भी बड़-बड़ करती हूँ
आँख खोले सोती हूँ
बंद कर आँखों को
अन्दर जगी होती हूँ
मेरी आँखें तुमको देख नहीं पाती
तुम देखते तो होगे
पल-पल मेरी खामोशी को
तुम सुनते तो होगे
दिन रात की सुधि तुम्हारे लिए है
मेरी ये हालत तुम्हारे लिए है
ये जानते तो होगे
फिर क्यों तुमने मुझ पे
हे आराध्य!
तरस खाना बंद कर दिया है?
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