भाषा की दीवार
बोलती मैं आज भी हूँ
फर्क इतना है
मुँह से बोल
नहीं झड़ते
कागज के पन्नों पर
अक्षर नहीं टहलते
हलक को प्यास नहीं लगती
उँगलियों को थकान नहीं होती
फिर भी
मैं तुमको सब सुनाती हूँ
क्या मेरे दिल की आवाज
तुम तक नहीं जाती
तुम्हारा प्यार ही तो है
जो
पत्थर का बुत मेरी बातें सुनता है
दिखते नहीं दूर तलक
तुम आसमान में
फिर भी
आसमान कुछ कहता है
कुछ आशा की किरणों को
मन संजोता है
तुम्हारा प्यार ही तो है
जो
हवा का झोंका कुछ कह जाता है
तुम्हारी तरह
अनगिनत भाषाएँ मैं नहीं जानती
पेड़, पशु-पक्षियों की बातें नहीं समझती
फिर भी यकीन है
मेरी हर धड़कनों को
तुम सुनते हो
मेरे बिन बोले भी
तुम सब समझते हो
क्योंकि
जहाँ कहीं भी प्यार है
वहाँ मुँह से बोलने की दरकार नहीं होती
भाषा की दीवार नहीं होती।
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