तुम्हारे रंग में

रंग गई आज फिर तेरे रंग में 


पाँव हैं गगन में 

संभाला है, तोहफा तुम्हारे एहसासों का 

सदियों से मैंने मन में


कितनी रातें बीत जाती हैं  

यूँ ही, आज भी पलकों में 

बात अभी भी वही है,उन झलकों में 

छूता है जब प्यार तुम्हारा 

पुरानी खिडकियों के झरोखों में


तुम्हारी बाँहों के वो घेरे 

मेरे मूँदती पलकों पर 

गरम साँसों के सवेरे 

कायनात ने बाँधे थे धागे 

नजरों ने लिए जब फेरे


शाम के सोने का पिघलना 

तुम्हारी धड़कनों की संगीत की लय में 

पागलों की तरह, तुम्हें खुदा बुलाना 

तुम्हारे बिन कहीं-न-कहीं

चाँद की चकोरी की तरह अधूरी


मैं आज भी कहाँ रुक पाती हूँ 

कभी जमीन,कभी दरिया,कभी चकोरी 

कितने ही नाम और रूप ले 

कागज के पन्नों पर, तुमसे आ मिलती हूँ |


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