तेरे और मेरे बीच
तेरे और मेरे बीच
एक लम्बी सड़क है
और कुछ गलियाँ हैं
इमारतें हैं औरखिड़कियाँ हैं
रोज सड़क पर ढूँढती हूँ तुम्हारे कदमों के निशाँ
अधखुली खिडकियों में होता है
तुम्हारे होने का भान
यूँ तो
खिड़की पे कभी तुम दिखे नहीं
फिर भी मन की आँखों ने हर दिन तुम्हें देखा है
बरसों बीत गए हैं
मुझे इस सड़क पर आते-जाते
यादों की गलियों में जीते-जीते
हवा में धुल कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी है अब
गर्द की परतों में
निशाँ तुम्हारे मिट जाते हैं
सर्दियों का कोहरा भी घना हो रहा है
खिड़कियों ने भी सफेद चादर ओढ़ ली है
आँखों पे कितना ही जोर डालूँ
दूर तक कुछ भी नजर नहीं आ रहा है
ठिठके कदम हैं मेरे कहीं
भाव का ही रिश्ता, था तो सही
तेरे और मेरे बीच
वक्त की कनखियों में
अब सिर्फ बुलबुले उभरते हैं
किस्से यूँ ही सिमट जाते हैं
इतिहास के पन्नों में |
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