एक मोड़ पर
एक मोड़ पर
एक चेहरा और दो आँखें
यूँ लगा मिल कर
लम्हों में सिमटा हो जन्मों का सफर
नजरें अपलक,थम गए पहर
जैसे जानी पहचानी सी हो डगर
आँखों का रंग
और उसका संग
ख्वाबों की लहरें, शाम से सहर
डूबो ले गया मुझे प्यार का भँवर
होली के रंग
ऊँगलियों की छुअन
बेतहाशा धड़कन
हवा में थिरके-से कदम
खोया मेरा मन
बिन उसके एक अधूरापन
फिर रोज एक इंतजार
समाना चाहूँ मैं बार-बार
मिलने की ऐसी पागलपन
रोके क्या मुझे दरिया और क्या दीवार
आवाज भी उसकी उतरने लगी अन्दर कहीं
पहचाने से थे कदमों की आहट भी
ख्वाब और हकीकत दोनों में डेरा उसका
मुझपे हर वक्त आँखों का पहरा उसका
पल भर भी दूर होना, नहीं मेरे बस का
बनाई खुदा की नयी तस्वीर मैंने
अक्स दे दिया उसका
कोई और नाम जुबान पर था ही नहीं
जाने क्या गलत क्या सही
इबादत की उस नाम से
जो नाम था उसका
एक मोड़
एक मंदिर और एक दुआ
लबों पर मुहब्बत का कलमा
रिश्ता बस उतना
मैं जोगन वो खुदा
मीरा के कृष्ण की तरह
तस्वीर और भजन में झलकता
ऐसे ही कभी अक्षर बन
मेरे पन्नो पर आ उभरता
एक चेहरा और दो आँखें |
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